क्या था सुदामा की गरीबी का कारण ?

//क्या था सुदामा की गरीबी का कारण ?

क्या था सुदामा की गरीबी का कारण ?

सुदामा और कृष्णा जी की मित्रता बहुत प्रसिद्ध है | सुदामा और कृष्णा दोनों ऋषि सांदीपनि के आश्रम में एक साथ शिक्षा ग्रहण करते थे | सुदामा एक गरीब ब्राह्मण परिवार से थे और कृष्णा एक संपन्न परिवार से फिर भी दोनों की मित्रता बहुत ही गहरी थी | सुदामा के बारे में एक कथा बहुत प्रचिलित है की बचपन में उन्होंने कृष्णा से छुपा कर चने खाये थे जो की उनकी गुरु माता ने दोनों को बराबर बाँट के खाने के लिए दिए थे | लोगो का मानना है की इसी कारण सुदामा गरीब ही रह गए थे | पर सुदामा ने अपने इतने घनिष्ट मित्र से छुपकर चने क्यों खाये और उनके पूछने पर की खाने के लिए कुछ है क्या,  झूठ क्यों बोला ? इस के पीछे एक नेक कारण था जो की इस पौराणिक कहानी से हमे पता चलता है |

पौराणिक कथा के अनुसार एक ब्राह्मणी थी जो बहुत गरीब निर्धन थी। भिक्षा मांग कर जीवन व्यतीत करती थी। एक समय ऐसा आया कि पांच दिन तक उसे भिक्षा नहीं मिली वह प्रतिदिन पानी पीकर भगवान का नाम लेकर सो जाती थी। छठवें दिन उसे भिक्षा में दो मुट्ठी चना मिले। कुटिया पे पहुंचते-पहुंचते रात हो गई। ब्राह्मणी ने सोचा अब ये चने रात मे नहीं खाऊंगी सुबह भगवान को भोग लगाकर फिर खाऊंगी। यह सोचकर ब्राह्मणी चनों को कपड़े में बांधकर रख दिया और वासुदेव का नाम जपते-जपते सो गई।

लेकिन कुछ समय बाद कुछ चोर चोरी करने के लिए उसकी कुटिया मे आ गए। इधर-उधर बहुत ढूंढा चोरों को कुछ नहीं मिला लेकिन वे चनों की बंधी पोटली चुराकर ले गए। क्योंकि उनको उस पोटला में सोने के सिक्के लगे। इतने में ब्राह्मणी जाग गई और शोर मचाने लगी। गांव के सारे लोग चोरों को पकडने के लिए दौड़े। चोर वो पोटली लेकर भागे। पकड़े जाने के डर से सारे चोर संदीपन मुनि के आश्रम में छिप गए, जहां भगवान श्री कृष्ण और सुदामा शिक्षा ग्रहण कर रहे थे।

कुछ समय बाद चोर उस आश्रम से भी भाग गए लेकिन वे चनों की पाटली वहीं पर भूल गए। इधर भूख से व्याकुल ब्राह्मणी ने श्राप दे दिया कि,  मुझ दीनहीन असहारा के जो भी चने खाएगा वह दरिद्र हो जाएगा। प्रात:काल गुरु माता आश्रम में झाड़ू लगाने लगी और उन्हें वही चने की पोटली मिली। गुरु माता ने पोटली खोल के देखी तो उसमें चने थे। सुदामा और कृष्ण भगवान जंगल से लकड़ी लाने जा रहे थे। तो गुरु माता ने वह चने की पोटली सुदामा को दी और कहा बेटा कि भूख लगे तो खा लेना।

सुदामा तो जन्मजात से ही ब्रह्मज्ञानी थे। ज्यों ही चने की पोटली सुदामा ने अपने हाथ में ली त्यों ही उन्हें सारा रहस्य मालुम हो गया। सुदामा जी ने सोचा गुरु माता ने कहा है यह चने दोनों लोग बराबर बांट के खाना। लेकिन ये चने अगर मैंने श्री कृष्ण को खिला दिए तो सारी सृष्टि दरिद्र हो जाएगी। मैं ऐसा नहीं करुंगा, मेरे जीवित रहते मेरे प्रभु दरिद्र हो जाएं ऐसा कदापि नहीं होगा।

तो इसी बात के डर से सुदामा ने सारे चने खुद खा लिए। दरिद्रता का श्राप सुदामा जी ने स्वयं ले लिया। लेकिन अपने मित्र श्री कृष्ण को एक भी दाना चने का नहीं दिया। ऐसे निभाई सुदामा ने अपनी दोस्ती और खुद बन गए गरीब।

 

Apoorva Yadav Kamboj

 

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By | 2022-01-17T11:54:24+00:00 January 17th, 2022|Spiritual|0 Comments

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