नीति और गौरव की शादी को अभी दो महीने ही हुए थे। नीति अपनी ससुराल में बहुत खुश थी। सास, ससुर से माँ, पापा जैसा प्यार और छोटे देवर अंकुश से एक भाई का स्नेह मिल रहा था। नीति की एक छोटी नन्द भी है, रीमा, जिसकी शादी को एक साल हुआ था। कुछ दिनों से नीति को अपने मायके की बहुत याद आ रही थी। रक्षाबंधन आने ही वाला है तो सोच रही थी इस बार कुछ दिन घर रुक कर आएगी। शादी के बाद बस पगफेरे की रसम के लिए दो दिन रह कर आई थी क्योंकि उसके बाद उसे हनीमून के लिए पेरिस जाना था।
आज मम्मी जी से बात करूँगी ऐसा सोच कर उनके पास जा ही रही थी कि रीमा का फ़ोन आ गया।“ कैसी हो भाभी? “ रीमा ने फ़ोन उठाते ही पूछा। “ मैं अच्छी हो रीमा, तुम बताओ आज कैसे याद आ गयी भाभी की? “ नीति ने हंस कर पूछा। “ याद तो बहुत आ रही है भाभी तभी रक्षाबंधन पे घर आ रही हूँ। भैया के साथ साथ आपको भी तो राखी बांधनी है, औऱ वैसे भी मुझे तो अपनी भाभी के साथ वक़्त बिताने का मौका ही नही मिला। आपकी शादी के बाद से मेरा आना जो नही हो पाया। खैर कोई बात नही इस बार बैठकर खूब बातें करेंगे। “ रीमा खुशी से एक साँस में सब बोले जा रही थी। “अच्छी बात है रीमा मेरा भी तुमसे मिलने का बहुत मन था “ नीति बोली। “ठीक है भाभी फिर मिलते हैं” कहकर रीमा ने फ़ोन रख दिया।
रीमा से मिलने की नीति को वाकई खुशी थी पर पहली बार भाई नीलेश को राखी नही बांध पाऊँगी ये सोच कर बहुत दुख हो रहा था। गौरव शायद कुछ हल निकाल पाए, शाम को ऑफिस से आएंगे तो बात करूँगी ये सोच कर नीति सो गई। शाम को जब आँख खुली तो बाहर से सबके हँसने की आवाज़ आ रही थी। “ क्या बात है सब बड़े खुश लग रहे हैं कुछ खास बात?” नीति ने पूछा। “ आओ नीति बेटा चाय पी लो, कुछ खास बात नही रीमा की बात हो रही थी” सुषमाजी बोलीं। “ भाभी दीदी आ रही हैं चार दिन बाद हमारे साथ राखी मनाने” अंकुश चहकता हुआ बोला। “ बहुत शरारती है हमारी रीमा उसकी ही हरकतें याद कर रहे थे। तुम मिलोगी तो जान जाओगी, उसके आने से रौनक सी आ जाती है घर में” गौरव बोला। घर मे सब को इतना खुश देखकर नीति ने घर जाने की बात ना करना ही उचित समझा और सबकी बात पे बस मुस्कुराते हुए शांत बैठ गई।
सुषमा जी अपनी बेटी के आने की खूब तैयारी कर रहीं थीं। बेसन के लड़डू, मट्ठी, शक्करपारे और भी बहुत सी चीजें अपने हाथों से बना रहीं थीं। नीति भी उनकी पूरी मदद कर रही थी। पूरा दिन सब रीमा की ही बातें करते रहते। नीति से किसी ने नही पूछा कि वो अपने भाई को राखी बांधने जाना चाहती है क्या। ये बात उसे बिल्कुल अच्छी नही लगी पर उसने किसी से कुछ नही कहा। मार्किट जाकर राखी ले आई और घर पोस्ट कर दी। नीलेश को फ़ोन करके बता दिया। नीलेश ने भी कोई ज़िद्द नही करी और मम्मी पापा ने भी समझाया कि ससुराल वालों की बात माननी चाहिए। सो नीति उदास मन सबके साथ खुश होने की कोशिश कर रही थी। पर मन ही मन वो ये सोच रही थी कि क्या बहुओं को त्योहार अपने घर मनाने का हक़ नही? उसे आज तक इस घर में बेटी और बहू में फर्क़ महसूस नही हुआ था पर शायद रीमा अभी तक आयी नही थी इसलिय। बेटी के आने की बात सुनके ही सब बहू को भूल गए। सबसे थोड़ी नाराज़ थी नीति।
आखिर राखी का दिन आ ही गया। रीमा सुबह जल्दी ही आ गई थी। आते ही उसने नीति को गले लगाया और फिर सबसे मिलकर बैठ गई। “ पहले रखी बांध लो रीमा फिर नाश्ता लगा देती हूँ” नीति बोली। “अभी रुको भाभी जल्दी क्या है, आओ पहले बातें हो जाएं” रीमा बोली। “ हमारी रीमा से तो बस बातें बनवा लो” सुषमा जी हँसकर कहने लगीं की तभी घंटी बजी। शायद काम वाली होगी मैं देखती हूँ कहकर नीति दरवाज़ा खोलने गई। दरवाज़ा खोला तो हैरान रह गई।
सामने उसके मम्मी, पापा और भाई नीलेश खड़े थे। इससे पहले वो कुछ कह पाती अंदर से सुषमा जी बोलते हुए आई “ कैसा लगा हमारा सरप्राइज बेटा? हम सबने सोचा इस बार ये त्योहार साथ मे मानते हैं” और फिर सबका स्वागत कर सबको अंदर ले गईं। नीति की आंखों में खुशी के आंसू आ गए और शायद पछतावे के भी। वो ना जाने इतने दिन से क्या क्या सोच रही थी। यहाँ बेटी और बहू में वाकई कोई फर्क नही था। ऐसा परिवार पाकर वो बहुत सुकून महसूस कर रही थी। इन ख़यालों में वो बाहर ही खड़ी खोई हुई थी कि रीमा की आवाज़ आई “ अब राखी मना भी लो भाभी फिर नाश्ता करते हैं, बहुत भूख लगी है ”। बस अभी आई कहकर नीति खुशी खुशी अंदर चली गई।
Great thought. Keep it up. There should be no difference between Daughter and Daughter in Law. Great message.